इतिहास

इतिहास के पन्नो में आँजणा समाज ....

आँजणा समाज, चौधरी, पटेल, कलबी या पाटीदार समाज के नाम से भी जाना जाता है। आँजणा समाज की कुल २३२ गोत्रे हैं ।जिसमे अटीस ओड,आकोलिया, फेड़, फुवा,फांदजी, खरसान, भुतादिया, वजागांड, वागडा, फरेन, जेगोडा, मुंजी, गौज, जुआ लोह, इटार, धुजिया, केरोट, रातडा, भटौज, वगेरह समाविष्ट हैं । भव्य बादशाही भूतकाल धरानी आँजणा जाति का इतिहास गौरान्वित हैं ।

आँजणा कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं। जैसे भाट चारण के चोपडे में आँजणा समाज के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जोड़ ली है । जब परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए । युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके ९२ पुत्रो की मृत्यु हो गयी ।आठ पुत्र युध्भूमि छोड के आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये ।अर्बुदा देवी ने उनको रक्षण दिया । भविष्य मैं वो कभी सशत्र धारण न करे उस शर्त पर परशुराम ने उनको जीवनदान दिया ।उन आठ पुत्रो मैं से दो राजस्थान गए ।उन्होंने भरतपुर मैं राज्य की इस्थापना की उनके वंसज जाट से पहचाने गए । बाकि के छह पुत्र आबू मैं ही रह गए वो पाहता अंजन के जैसे और उसके बाद मैं उस शब्द का अप्ब्रंश होते आँजणा नाम से पहचाने गए ।

सोलंकी राजा भीमदेव पहले की पुत्री अंजनाबाई ने आबू पर्वत पर अन्जनगढ़ बसाया और वहां रहनेवाले आँजणा कहलाये ।मुंबई मैं गेझेट के भाग १२ मैं बताये मुजब इ. स. ९५३ में भीनमाल मैं परदेशियों का आक्रमण हुआ, तब कितने ही गुजर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र गए । उस वक्त आँजणा पटिदारो के लगभग २००० परिवार गाडे में भीनमाल का निकल के आबू पर्वत की तलेटी मैं आये हुए चम्पावती नगरी मैं आकर रहने लगे । वहां से धाधार मे आकर स्थापित हुए, अंत मे बनासकांठा ,साबरकांठा ,मेहसाना और गांधीनगर जिले मे विस्तृत हुए ।

सिद्धराज जयसिंह इए .स . 1335-36 मैं मालवा के राजा यशोवर्मा को हराकर कैद करके पटना में लकडी के पिंजरे मे बंद करके घुमाया था।मालवा के दंडनायक तरीके दाहक के पुत्र महादेव को वहिवाट सोंप दिया ।तब उत्तर गुजरात मे से बहुत से आँजणा परिवार मालवा के उज्जैन प्रदेश के आस -पास स्थाई हुए है ।वो पाटन आस पास की मोर, आकोलिया , वगदा ,वजगंथ,जैसी इज्जत से जाने जाते हैं ।आँजणा समाज का इतिहास राजा महाराजो की जैसे लिखित नहीं हैं ।धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई सिलालेखो मे बोध नहीं है।खुद के उज्जवल भविष्य के लिए श्रेष्ठ मार्गद है।

इस समाज के लोग मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात,मध्य प्रदेश ( मेवाड़ एवं मारवाङ क्षेत्र ) में रहते हैं ।आँजणा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। आँजणा समाज बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है एवं आजादी के बाद यह परिपाटी बदल रही है। समाज के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार की ओर बढ रहे हैं।इस समय समाज के बहुत से लोग,महानगरों और अन्य छोटे - बड़े शहरों मे कारखानें और दुकानें चला रहे है।आँजणा समाज के बहुत से लोग सरकारी एवं निजी सेवा क्षेत्र में विभिन्न पदों पर जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, अध्यापक, प्रोफेसर और प्रशासनिक सेवाओं जैसे आईएएस, आईएफएस आदि में हैं।

आँजणा समाज में कई सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने जन्म लिया है।अठारहवीं सदी में महान संत श्री राजाराम जी महाराज ने आँजणा समाज में जन्म लिया ।उन्होंने समाज में अन्याय ( ठाकुरों और राजाओं द्वारा ) और सामाजिक कुरितियों के खिलाफ जागरूकता पैदा की।उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। आँजणा समाज की सनातन( हिन्दू ) धर्म में मान्यता है।आँजणा समाज में अलग अलग समय पर महान संतों एवं विचारकों ने जन्म लिया हैं।इन संतो एवं विचारकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों एवं मठों का निर्माण भी करवाया।राजस्थान में जोधपुर जिले की लूणी तहसील में शिकारपुरा नामक गाँव में एक मठ ( आश्रम )का भी निर्माण करवाया।यही आश्रम आज श्री शिकारपुरा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ।

संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम,शिकारपुरा जोधपुर यह आश्रम राजस्थान के जोधपुर जिले के शिकारपुरा गाव में स्थित है।शिकारपुरा आश्रम लूणी से 13 किमी पर स्थित है लूणी राजस्थान के जोधपुर जिले में एक तहसील है । इस आश्रम की स्थापना उन्नीसवीं शताब्दी में संत श्री राजारामजी महाराज द्वारा की गयी थी ।